अध्याय 1 धुंध में खोया चेहरा
(दोपहर का समय सपने में कक्षा का दृश्य कमरे में शांति और मन को विचलित कर देने वाला सन्नाटा पसरा है। कक्षा में सभी छात्र अपनी अपनी जगह पर गणित का पेपर देने बैठे हैं। अरुण गुमसुम सा बैठा है। उसके चेहरे पर घबराहट और तनाव झलक रहा है।)
अरुण (अपने आप से, धीरे से): अब क्या होगा मैंने गणित के पेपर के लिए बिल्कुल भी तैयारी नहीं की मैं पेपर में क्या लिखूं।
(उसकी आवाज में घबराहट है वह अपने आस पास इधर उधर देखता है लेकिन कोई भी छात्र उसकी मदद नहीं करता।)
(थोड़े समय बाद सपना बदल जाता है सपने में अरुण की आँखें बंद हैं, और उसे एक अस्पष्ट और गूंजती हुई आवाज आती है)
आवाज (घंटे जैसी गूंज): हम आ रहे हैं... हम तुम्हारे जीवन का हर एक पहलू अच्छे से जानते हैं। जैसे इस जीवन का उद्देश्य क्या है? ऐसे प्रश्न जो तुम्हे बार बार परेशान करते हैं।
(अरुण चौंकते हुए एकदम से जागता है, उसकी आँखें खुली और शरीर जकड़ा हुआ है। कुछ समय बाद अरुण अपने आप को हिलाता है, और बिस्तर से उठ जाता है। दिल की धड़कन बढ़ी हुई है कुछ समय के लिए वह सपने और हकीकत में अंतर महसूस नहीं कर पाता)
(असहज महसूस करते हुए अरुण अपनी मां के पास जाता है)
अरुण (घबराहट में):
मां, मैं... मैं जब सो रहा था तब कोई मुझसे बातें कर रहा था। मां मुझे बिल्कुल भी अच्छा महसूस नहीं हो रहा, लगता है कि मेरे साथ कुछ बुरा हो रहा है।
(उसकी आवाज़ में खौफ़ और असमंजस है।)
माँ(गुस्से में):
बेटा तुम कैसी बातें कर रहे हो कोई भी तुमसे बातें नहीं कर रहा था। क्या तुम फिर से वही भूत-प्रेत वाली बातें करने लगे हो? तुम बड़े हो गए हो, अब ये सब नाटक बंद करो। तुम हनुमान चालीसा का पाठ करो फिर तुम्हे कोई परेशान नहीं करेगा।
अरुण(हड़बड़ाते हुए):
नहीं माँ, ये बस... ये एक गहरा षड्यंत्र है, मुझे लगता है कि मोहन ने मुझ पर काला जादू करवा दिया है।
(वह चुप हो जाता है, और फिर अंदर से एक नई चिंता बढ़ती है।)
माँ (धीरे से, सख्त आवाज में):
तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। अगर तुम पर काला जादू किया है, तो हम किसी तांत्रिक को बुलाकर सब ठीक करवा देते हैं।
(अभी वर्तमान में अरुण प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा है। उसका मन पढ़ने में नहीं लगता लेकिन वह फिर भी पढ़ने की कोशिश करता है।)
अरुण (मन ही मन):
क्या होगा अगर मेरी जॉब नहीं लगेगी? क्या ये आवाजें सच हैं? मुझसे सपने में कौन बात करता है।
(यह सब सोचते हुए अरुण अपने पास्ट को याद करता है जब उसने रुड़की में इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया था। तब वह बहुत खुश था। लेकिन उसकी खुशी को जल्द ही किसी की नजर लग गई। अरुण अपने पास्ट को याद करते हुए उसमें खो जाता है।अरुण को उस दिन की यादें आंखों के सामने दिखाई देती है जब वह रुड़की में इंजीनियरिंग कर रहा था।)
(फ्लैशबैक - रुड़की सुबह का समय)
(रुड़की में अरुण अपने कमरे के भीतर एक कुर्सी पर बैठा है। आंखें आंसुओं से भरी हुई, और चेहरे पर गहरी उदासी की छाया। वह बैठ कर अपने बचपन से लेकर इंजीनियरिंग तक के सफर को याद कर रहा था– इंजीनियरिंग कॉलेज, दोस्त, उम्मीदें – सब अब एक धुंध में गुम हो गए हैं।)
अरुण (धीरे-धीरे, टूटी आवाज़ में):
"मैं सभी के लिए कितना अच्छा सोचता हूं लेकिन कोई भी मुझ से अच्छा व्यवहार नहीं करता। मैं अच्छा करना चाहता था… लेकिन अब कुछ समझ नहीं आता क्या करूं सब लोग मेरे विपरित हो गए हैं।"
(वह अपने आंसुओं को रोकता है। उसकी आँखें फिर से भीगने लगती हैं। यादें फिर ताज़ा हो उठती हैं, उन दिनों की जब बचपन एक भारी बोझ लगता था।)
(अरुण जब कक्षा आठ में था तब का एक दृश्य उसकी आंखों के सामने चमकता है — रसोई का एक कोना, जहाँ वह कॉपी लेकर बैठा था। उसकी मां गुस्से से चिल्ला रही थी)
माँ (क्रोध में):
" उस वैज्ञानिक का नाम बता जिसने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत लेकर आया था?"
अरुण (डरा हुआ):
"न्यूटन"
मां(क्रोध में)
"बोल!... उस वैज्ञानिक का नाम बता जिसने टेलीविजन की खोज की"
(अरुण थरथराते हुए मौन हो गया)
(अरुण की माँ ने बिना कुछ कहे चूल्हे में जलता हुआ लाल चिमटा उठाया और अचानक उसका गर्म सिरा अरुण के गाल पर रख दिया।)
अरुण (चीखते हुए):
"आअहहह!"
(गाल पूरी तरह जल चुका है। वह दर्द से कराह रहा है, मगर मां की आंखों में कोई नरमी नहीं।)
माँ (सख्त स्वर में):
"अब तुम्हे वैज्ञानिक के नाम याद रहेंगे। अगर तू पढ़ेगा तब ही तो समझ में आएगा।"
(कुछ देर बाद दरवाज़े पर दस्तक हुई। बाहर से चार लोग दाखिल हुए – गांव से आए हुए ममेरी बहने। उनमें से बहन – दामिनी – अरुण से कुछ साल बड़ी थी। उसकी आंखों में आते ही चिंता फैल गई।)
दामिनी (चौंककर):
"अरे अरुण को क्या हुआ? गाल जल गया है क्या इसका!"
(वह झुककर अरुण को उठाती है, उसके बालों पर हाथ फेरती है।)
दामिनी:
"बुआ, आपने इसे मारा?"
अरुण की माँ (गंभीर और सख्त):
"हाँ, मैंने उसके गाल पर गर्म चिमटा रख दिया। ये अपनी कॉपी में लिखे वैज्ञानिकों के नाम याद नहीं कर पाया।
दामिनी (हैरानी से):
"पर बुआ, उसे तो अपना पूरा पाठ के प्रश्न उतर याद है। पिछली बार जब हम आए थे तो उसने पूरा पाठ मुझे सुनाया था। आपने सिर्फ एक वैज्ञानिक के नाम को याद न कर पाने के लिए अरुण के चेहरे पर गर्म चिमटा रख दिया।
अरुण की माँ (जवाब में, जैसे खुद को सही ठहरा रही हो):
"मैंने वही पूछा था जो कॉपी के पहले पन्ने पर लिखा है। अगर पहला पन्ना ही याद नहीं रहेगा, तो परीक्षा में क्या लिखेगा? अब गलती की है तो सज़ा भी मिलेगी।"
अरुण (धीरे से, टूटी आवाज़ में):
"मुझे याद था... पर माँ ने पूछा था कि कॉपी के पहले पन्ने पर कौन-कौन से वैज्ञानिकों के नाम लिखे हैं... मुझे वह याद नहीं आया... क्यों कि वह हमारे सिलेबस में नहीं है।"
(धीरे धीरे यह बात गांव में फैल गई गांव वालों ने भी मां का ही पक्ष लिया।)
रिश्तेदार:
"अरे अच्छा किया बहन जी ने। जब पढ़ाई नहीं करेगा तो यही होगा। जब हमारे बच्चे भी पढ़ाई नहीं करेंगे तो हमें भी उनके साथ यही करना चाहिए। तभी तो बच्चे सुधरेंगे।"
क्रमशः
- शशि प्रेम
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