लघु कथा "वज़ूद का बोझ" अध्याय 3

अध्याय 3: संघर्ष का मूल्य

 (कृपाल द्विवेदी के मंच का दृश्य)

कृपाल द्विवेदी ने मंच से भीड़ की ओर देखा, फिर कहा:

“भीड़ में एक शख्स हैं जो मेरी परीक्षा लेने के मकसद से आया है उसने काला कुर्ता पहना है नाम अर्जुन वर्मा है वो कहाँ है? मंच पर आ जाए।”

भीड़ की निगाहें घूमीं। अर्जुन चुपचाप उठा और मंच की ओर बढ़ गया।

कृपाल द्विवेदी ने उसे देख कर मुस्कराते हुए कहा —

“तुम्हारे मन में जो संशय हैं, उनका आज निवारण करेंगे।”

अर्जुन चुप रहा।

कृपाल बोले,

“तुम्हारा मन क्या सोच रहा है, मैं जानता हूँ —

तुम्हारे पिता का नाम, बचपन की वो घटना जब तुम साइकिल से गिरे थे...— सब कुछ।”

अर्जुन के चेहरे पर एक पल को हल्का झटका था, लेकिन उसने खुद को सँभाल लिया।

“अगर आप सच में सब जानते हैं,” अर्जुन बोला, “तो मैं एक सार्वजनिक चुनौती देता हूँ।”

भीड़ सन्न हो गई।

“मैं कुछ अजनबियों को आपके सामने लाऊँगा। उनका नाम, अतीत और मोबाइल नंबर आपको बताना होगा —

लेकिन ये परीक्षण एक बंद कमरे में होगा, जहाँ आप तक कोई सूचना न पहुँचे।

अगर आपने सही बताया, तो मैं सबके सामने आपसे माफी माँग लूँगा।”

सत्यप्रकाश कुछ कहने को हुआ, लेकिन कृपाल ने हाथ उठाकर रोक दिया।

उसने अर्जुन की ओर देखा — और पहली बार उसकी मुस्कराहट जमी हुई सी लगी।

फिर बस एक वाक्य कहा गया:

“मंच से नीचे उतर जाइए।”

अर्जुन बिना किसी प्रतिरोध के नीचे आ गया।

अगली सुबह के अख़बारों में छपी हेडलाइन:

“कृपाल द्विवेदी ने दरबार अचानक स्थगित किया — बंबई रवाना”

दरबार अचानक स्थगित करने का कोई कारण नहीं बताया गया।

सूत्रों के अनुसार, अगले आदेश तक सभी तांत्रिक शिविर रद्द।

उसी दिन...

अर्जुन वर्मा ने कृपाल द्विवेदी पर मुक़दमा दर्ज कर दिया

ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज़ अधिनियम, धोखाधड़ी, झूठे दावे, और जनता को गुमराह करने के आरोप में।

गाँव में खलबली मच गई।

कहीं समर्थन, कहीं विरोध — लेकिन एक बात तय थी:

अर्जुन वर्मा की लड़ाई सिर्फ मंच की नहीं, अदालत तक पहुंच चुकी थी।


कुछ दिन बाद...

अर्जुन वर्मा की तबीयत अचानक बिगड़ने लगी।

बार-बार थकावट, आँखों में पीलापन और पेट में सूजन...

जाँच के बाद डॉक्टर ने कहा:

"लिवर सिरोसिस है। हालत गंभीर है। जल्द ऑपरेशन और इलाज ज़रूरी है।"

अर्जुन के पास न ऑपरेशन के पैसे थे, न दवाइयों के और ना ही वक्त।

उसके वकील हेमंत ने एक दिन गंभीर आवाज़ में कहा:

 “देखो अर्जुन, तुम्हारी हालत बिगड़ रही है।

 अगर तुम चाहो, तो मैं कृपाल द्विवेदी से बात कर सकता हूँ।

वो चाहे तो तुम्हारा इलाज अपने अस्पताल में फ्री में करवा सकता है —

बशर्ते तुम मुक़दमा वापिस लेकर समझौता कर लो।”

अर्जुन चुप रहा।

कमरे में सन्नाटा फैल गया।

अब लड़ाई सिर्फ बाहरी नहीं थी —

अब अर्जुन के भीतर भी एक युद्ध शुरू हो गया था।

कुछ दिनों बाद जब अर्जुन की तबीयत बहुत ज्यादा बिगड़ने लगी तो उसका वकील हेमंत उसके पास आया 

हेमंत ने अर्जुन से गंभीर होकर कहा:

“अर्जुन, ज़िंदगी कितनी अनमोल है, ये सोचो। लाखों साल पहले हमारे पूर्वज गुफाओं में रहते थे, केवल शिकार और कुदरत पर निर्भर थे। धीरे-धीरे उन्होंने खेती करना सीखा, झोपड़ी बनाई, और फिर समय के साथ ये सभ्यता और तकनीक का युग आया।

अगर वे अपने ही सिद्धांतों पर ही टिके रहते, तो शायद हम यहाँ नहीं होते।

जीवन में ऐसे पल आते हैं जब हमें अपने सिद्धांतों को थोड़े समय के लिए छोड़कर, दूसरों के विचारों को स्वीकार करना पड़ता है।

कभी-कभी समझौता ज़रूरी होता है, ताकि हम खुद को बचा सकें और फिर लड़ सकें।”

अर्जुन ने कुछ नहीं कहा कुछ समय बाद अर्जुन समझौते के लिए मान गया लेकिन वैसे ही उसकी मौत हो गई।

-शशि प्रेम 



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