लघु उपन्यास "वज़ूद का बोझ" अध्याय 2

अध्याय 2: अंधविश्वास की दरार

बडकोट की गलियों में अब सिर्फ गायों की घंटियों की आवाज़ या विद्यालय में बच्चों की प्रार्थना की आवाज नहीं थीं — अब वहाँ चर्चा थी, बहस थी, और फुसफुसाहटें थीं।

"कृपाल बाबू का अपमान? वो भी अखबार में?"

"कहता है, सब ढोंग है..."

अर्जुन के लेख ने, जो उसने एक स्थानीय अख़बार को भेजा था, जैसे गाँव की शांत माहौल में आग की एक चिंगारी जला दी हो।

और उस दिन के अख़बार में...

"अंधविश्वास या धोखा? —बडकोट के एक युवक ने खोले चमत्कारी दरबार के पर्दे। चमत्कार से किसी भी बीमारी का इलाज संभव नहीं और ना किसी प्रकार की सिद्धी से किसी का भूत भविष्य वर्तमान जाना जा सकता है।"

अर्जुन का लेख अब सिर्फ गाँव की गलियों तक सीमित नहीं रहा। उसे एक क्षेत्रीय अख़बार ने छापा था — और साथ में छपी थी एक तस्वीर जिसमें कृपाल द्विवेदी मंच पर सुरेश के भूत काल में हुई घटनाओ का ब्यौरा दे रहा था बिना उससे पूछे।

नीचे अर्जुन का कैप्शन था:

"यह तंत्र नहीं, अभिनय है। यह भूत प्रेत बाधा नहीं मानसिक रोग हैं इस देश में जहाँ दवा महंगी है, वहाँ चमत्कार को असरदार बना दिया गया है।"

उधर दरबार में…

कृपाल द्विवेदी के डेरे में तनाव था।

उसका प्रमुख अनुयायी सत्यप्रकाश कागज़ लहराते हुए आया:

“गुरुवर... ये देखिए... कल से फोन बंद नहीं हो रहे... पत्रकार पूछ रहे हैं सवाल... और तो और कुछ ‘भक्त’ भी सवाल करने लगे हैं…”

कृपाल ने अख़बार को देखा, उसकी भौहें तन गईं।

“अर्जुन... उस लड़के ने कलम से जो चोट मारी है, वो अगर समय रहते न रोकी गई... तो हमारी सारी साधना... सारी योजना मिट्टी में मिल जाएगी।”

सत्यप्रकाश बोला — “अब क्या करें?”

कृपाल ने गहरी साँस ली — और मुस्कराया।

"अब दरबार में हम अपना चमत्कार दिखाएंगे"

अगले दिन — “दरबार विशेष आयोजन”

गाँव में फिर से ढोल-नगाड़े, रंगीन झंडियाँ और मंच सजा था।

इस बार मंच पर एक बैनर लटका था:

"अब कैंसर और लिवर सिरोसिस जैसे गंभीर बीमारियों का तांत्रिक समाधान — सिर्फ कृपाल द्विवेदी के चमत्कारी मंत्रों से"

मंच पर भीड़ जमा थी। कृपाल सफेद कपड़ों में बैठा था, उसके आगे रखे थे कुछ मिट्टी के घड़े जिनमें भभूत मिली पानी था — और चारों ओर धूप, कपूर और लाउडस्पीकरों की गूँज।

सामने लाया गया रामप्रसाद — एक 52 वर्षीय व्यक्ति, जिसकी आँखें पीली थीं और पेट फूला हुआ।

“इन्हें लिवर सिरोसिस है,” एक आदमी बोला।

कृपाल ने आँखें मूँदीं, कुछ बुदबुदाया, और फिर घड़े से जल उठाकर रामप्रसाद के सिर पर डाला।

“ये जल कोई साधारण जल नहीं... ये सिद्ध जल है... इसके हर बूँद में है चमत्कार!”

रामप्रसाद की हालत देखती भीड़ कुछ देर को चुप रही। तभी कृपाल ने बोला:

“आज से सात दिन में इसका लिवर ठीक हो जाएगा और डॉ की दवा लेते रहना तुम हमारे लीवर रोग चिकित्सालय से अपना इलाज फ्री में करवा सकते हो" 

गरीबों की सेवा के नाम पर कृपाल द्विवेदी ने अपना एक लीवर रोग चिकित्सालय खोल रखा है उसने कागज पर कुछ लिख कर दिया जिससे रामप्रसाद का उस अस्पताल में इलाज फ्री में हो सके।

वह चुप हुआ, और फिर भीड़ की ओर देखा:

भीड़ से एक युवक को बुलाया गया जिसका कैंसर कृपाल द्विवेदी ने अपने चमत्कार से ठीक कर दिया था। उस युवक ने अपनी मेडिकल जांच सबके सामने रखी और कृपाल द्विवेदी के जयकारे लगाए।

 वहीं दूसरी ओर…

अर्जुन दूर एक किनारे से सब देख रहा था।

उसने अपनी जेब से नोटबुक निकाली और लिखा:

  “अब बीमारियाँ भी चमत्कार से ठीक होने लगी हैं — कम से कम कृपाल द्विवेदी तो यही दिखाना चाहतें हैं।”

क्रमशः - शशि प्रेम 

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