अध्याय 1: बिना कीमत की आवाज़ बडकोट की सुबह अक्सर कच्ची सड़क और कच्चे मकानों से लिपटी होती है लेकिन अर्जुन के लिए यह सिर्फ राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था का प्रतिबिंब नहीं था, बल्कि उसकी भीतरी विद्रोही स्…
अध्याय 2: अंधविश्वास की दरार बडकोट की गलियों में अब सिर्फ गायों की घंटियों की आवाज़ या विद्यालय में बच्चों की प्रार्थना की आवाज नहीं थीं — अब वहाँ चर्चा थी, बहस थी, और फुसफुसाहटें थीं। "कृपाल बा…
अध्याय 3: संघर्ष का मूल्य (कृपाल द्विवेदी के मंच का दृश्य) कृपाल द्विवेदी ने मंच से भीड़ की ओर देखा, फिर कहा: “भीड़ में एक शख्स हैं जो मेरी परीक्षा लेने के मकसद से आया है उसने काला कुर्ता पहना है न…
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