लघु उपन्यास "ध्यान सभा" अध्याय 5 प्रोजेक्ट मुहिम

 अध्याय 5 प्रोजेक्ट मुहिम

शहर की गलियों में अब एक ही नाम गूंज रहा था — “ध्यान सभा।” लोगों ने इसे पहले एक शांति अभियान समझा था, पर अब वही सभा पुलिस की निगाहों में विद्रोह बन चुकी थी।

कमिश्नर ने मीडिया के सामने बयान दिया —

“यह सब पॉल नामक व्यक्ति के ध्यान सभा के अनुयायियों का काम है। शहर की शांति भंग करने की कोशिश की जा रही है।”

कुछ ही घंटों में ध्यान सभा पर प्रतिबंध लगा दिया गया। पॉल के कई अनुयायी गिरफ्तार कर लिए गए। और पॉल को सख्त चेतावनी दी गई —

 “अगर उसने दोबारा कोई सभा आयोजित की, तो उसे देशद्रोह के तहत जेल भेज दिया जाएगा।”

पर पॉल नहीं रुका।

वह शहर की भीड़ से गायब होकर, अपने घर के एक छोटे से कमरे में “प्रोजेक्ट मुहिम” नामक एक नई योजना पर काम करने लगा।

वह अब केवल भरोसेमंद अनुयायियों से मिलता 

रात के अंधेरे में, बिन रोशनी, बिना आवाज़।

“सरकार ने हमारी राह बंद की है,” उसने कहा,

“तो हमें अपनी राह खुद बनानी होगी।

हम एक ऐसा गाँव बसाएँगे,

जहाँ केवल हमारा कानून हो —

सिर्फ ध्यान, और स्वतंत्रता।”

सबने सिर झुका दिया।

पॉल की आवाज़ में एक सम्मोहन था — एक ऐसा सम्मोहन जो धीरे-धीरे सबके भीतर उतरता जा रहा था।

अमित इन दिनों बहुत अकेलापन महसूस कर रहा था।

उसे लग रहा था जैसे पॉल अब उस पर ध्यान नहीं देता।

अमित को प्रोजेक्ट मुहिम के बारे में जरा सा भी आइडिया नहीं है

वह पूछता —

“ये प्रोजेक्ट मुहिम क्या है?”

तो अनुयायी कहते,

 “श्रीमान, हमें इसके बारे में बात करने की अनुमति नहीं है।”


एक शाम वह देखता है —

सब लोग गाड़ियों में कुछ सामान भरकर कहीं जा रहे हैं।

वह पीछा करता है और देखता है कि दूर जंगलों के बीच एक गाँव बसाया जा रहा है।

मकान, कि दीवारों पर ध्यान के प्रतीक,

और चारों ओर पहरेदार।

पर सबसे चौंकाने वाली बात यह थी —

पॉल अब हथियार और बम बनवा रहा था।

“यह सुरक्षा के लिए है,”

किसी ने कहा,

पर अमित के भीतर कुछ टूट गया।

अगले दिन ध्यान सभा के अनुयायी गाँव के चारों ओर बम बिछाए जा रहे थे।

अमित बहुत परेशान हो जाता है उसे लगा ये सब पागल हो गए हैं। और इन्हें सिर्फ पॉल रोक सकता है।

थोड़ी देर में जब वहां पूजा आई तो, अमित ने कहा पॉल यहां नहीं है वह जा चुका है। पूजा को यह सुनकर थोड़ा अजीब लगा। लेकिन वह बिना कुछ कहे वहां से चली गई।

अमित पॉल को ढूँढने निकला —

पूरे गाँव को छान मारा —

पर पॉल कहीं नहीं था।

बस उसके कमरे में कुछ रेल की टिकटें मिलीं,जहाँ जहाँ पॉल ने गाँव के लिए जरूरी समान को एकत्र करने के लिए ट्रेवल किया था।

अमित ने हर जगह जाकर उसे ढूँढा।

वह कई आश्रम में गया।

हर किसी ने उसे पहचान लिया —

 “आप तो पॉल हैं न?”

वह हक्का-बक्का रह गया।

“मैं पॉल नहीं हूँ,”

वह कहता,

पर कोई विश्वास नहीं करता।

एक व्यक्ति ने हँसकर कहा —

 “पॉल को कोई नहीं पहचान सकता।

वह अपनी साधना से रूप बदल लेता है।”

अमित को यह बेतुकी बात लगी।

तभी अंत में वह एक आदमी से पूछता है।

“क्या तुम पॉल को जानते हो?”

वह मुस्कराया,

 “आप ही तो पॉल हैं।”

इतना सुनते ही अमित के पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक गई। वह काँपते हाथों से पूजा को कॉल करता है।

 “क्या हम दोनों के बीच… प्रेम संबंध हैं?”

यह सुन कर पूजा को गुस्सा आ गया उसने कहा—

 “तुम क्या पागल हो गए हो?

 हम इतने दिनों से साथ रह रहे हैं…

पॉल, ये क्या पूछ रहे हो तुम?”

अमित ने कहा 

“तुमने मुझे अभी क्या कहा?”

पूजा 

 “पॉल।”

अमित कुछ समझ पाता उससे पहले पॉल उस कमरे में भूत के जैसे सामने आ गया। अमित ने पूछा सब तुम्हें मुझे क्यों समझ रहे हैं। पॉल ने कहा तुम अपनी जिंदगी बदलना चाहते थे। लेकिन यह तुम अकेले नहीं कर पाते तो तुमने अपने दिमाग में मुझे बनाया। मैं तुम्हारे दिमाग की एक इमेजिनेशन हूं। सारे काम तुम खुद कर रहे हो। डरो मत लोग ये हर रोज करते हैं। अपने आप से बात करते हैं अपने आप को वैसे ही समझते हैं। जैसे वो खुद को देखना चाहते हैं।

अमित स्तब्ध था।

पॉल ने कहा 

 “अगर यकीन नहीं होता, तो मेरी जगह खुद को रखो।

 हम दोनों एक हैं।”

अमित की आंखों में आँसू थे —

अब उसे सब समझ आ गया था।

वह खुद ही पॉल था और सब कुछ उसी ने किया था —

अपने घर में आग लगाना, ध्यान सभा और प्रोजेक्ट मुहिम

इस लिए उसे नींद नहीं आती थी। दिन में वह अमित था और रात में पॉल, जब अमित को नींद आ जाती तब तुरंत वो फिर से पॉल बनकर जाग जाता इसलिए उसे याद नहीं रहता की पॉल क्या कर रहा है।

वह थाने गया

खुद को पॉल के नाम से आत्मसमर्पित (surrender) कर दिया।

पर वहाँ जो अधिकारी मिले,

वे वही लोग थे — जो प्रोजेक्ट मुहिम के सदस्य थे।

उन्होंने हँसकर कहा,

“तुम कहीं नहीं जाओगे, पॉल।”

उसे जबरदस्ती गाँव वापस पहुँचा दिया गया।

जैसे ही पॉल और उसके बसाए गाँव की खबर पुलिस के बड़े अधिकारियो को मिली। पुलिस ने सेना के साथ तुरंत एक्शन लिया कुछ घंटे बाद सेना ने उस गाँव को घेर लिया।

जगह-जगह विस्फोट होने लगे।

गाँव का हर रास्ता, हर पेड़, आग में बदल गया।

हथियारबंद ध्यान सभा के सदस्य

सेना से भिड़ गए।

पूरा गाँव ज्वालाओं में समा गया।

केंद्र में बने घर की खिड़की से

पूजा और अमित सब देख रहे थे 

अंत में जीत पॉल की हुई 

ध्यान की भूमि, अब विनाश की भूमि बन चुकी थी।

पूजा धीरे से बोली —

 “क्या तुम्हारी सच्ची आजादी यही है?”


-अरुण चमियाल 


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