लघु उपन्यास "ध्यान सभा" अध्याय 4 मौन विद्रोह

 अध्याय 4 मौन विद्रोह

शाम ढल रही थी। खंडहर आश्रम की हवा में सुगंधित धूप की गंध फैल रही थी। अमित ध्यान सभा में पहुंचा तो उसने अचानक देव को अपनी तरफ आते देखा। वही पुराना चेहरा, और आँखों में एक अजीब-सा सुकून।

“तुम…?” अमित ने पूछा।

देव मुस्कराया—“हाँ, अब मैं भी ध्यान सभा का हिस्सा हूँ। अब मैं डिप्रेशन ग्रुप में जाकर रोता नहीं बल्कि ध्यान के गहनतम अनुभव में जाकर अपने पुराने दिनों को भुलाने की कोशिश करता हूं। अब मैं बहुत खुश हूं”

अमित ने पहली बार देव को इतना खुश देखा। इसे देखकर वह भी चुप हो गया।

धीरे-धीरे ध्यान सभा बढ़ने लगी। पहले ये बस दो लोग थे, लेकिन अब सूट-बूट पहने अफसर से लेकर मजदूर तक खंडहर में बैठकर सांसों पर ध्यान करते थे। अमित को शहर में अब हर तरफ ध्यान सभा के सदस्य मिलते।

बढ़ते सैलाब को रोकने के लिए पॉल ने ध्यान सभा के कुछ नियम बनाए 

1.ध्यान सभा के बारे में कोई बात नहीं करेगा।

2. ध्यान के अनुभवों के बारे में भी कोई बात नहीं करेगा।

बिना सवाल जवाब ध्यान सभा के सदस्यों ने इन नियमों का सख्ती से पालन किया।

एक दिन, खण्डहर आश्रम का मालिक ध्यान सभा में आया। गुस्से से लाल होकर वह चिल्ला रहा था—

“तुम सब किसकी इजाज़त से यहाँ ध्यान सभा चला रहे हो? तुम यहाँ से कितने पैसे कमा रहे हो?”

उसने पॉल पर अभद्र भाषा का प्रयोग किया और हाथ उठाया। पॉल बिलकुल शांत बैठा रहा।

पॉल ने धीरे से पूछा

“क्या तुम्हारी बात पूरी हो गई?” “अब हम ध्यान सभा शुरू करें?”

मालिक हक्का-बक्का रह गया।

पॉल ने कहा

“ये सभा सबके लिए फ्री है,”  “हम यहाँ से नहीं जाएंगे। चाहो तो तुम भी शामिल हो जाओ।”

आश्रम के मालिक ने देखा कि पॉल बिल्कुल पागल है इसलिए उसने भी वहा ध्यान सभा चलाने की अनुमति दे दी।

अमित ने तब से सपोर्ट ग्रुप जाना बिल्कुल छोड़ दिया था। यहाँ कोई पूजा जैसी लड़की नहीं थी, कोई झूठ नहीं था सिर्फ लोगों की सच्ची तकलीफें थी और ध्यान का गहन अनुभव।

लेकिन एक दिन अमित को पूजा का कॉल आया।

“तुम इतने हफ्तों से यहाँ क्यों नहीं आए? मैंने तुम्हें बहुत मिस किया,” उसकी आवाज काँप रही थी।

अमित चुप रहा।

पूजा ने कहा 

“मेरे घर में पानी नहीं आ रहा है घर का राशन खत्म हो गया है मैं कल से भूखी हूँ मेरे पास पैसे भी नहीं है अगर तुम नहीं आए तो… मैं बहुत सारी नींद की दवाएँ खा रखी हूं …”

अमित ने फोन रख दिया और सोने चला गया।

सुबह उठते ही उसने देखा—पॉल के कमरे का दरवाज़ा बंद है। इतने दिनों में उसने कभी अपना गेट अंदर से लॉक नहीं किया था। तभी पॉल का दरवाज़ा खुला और पूजा भीतर आ गई।

“तुम यहाँ क्या कर रही हो?” अमित के मुँह से सवाल निकला।

यह सवाल सुनकर पूजा के चेहरे पर गुस्सा आ गया उसने कहा —“कल रात तुम ही मुझे यहाँ लाए थे!”

अमित हैरान रह गया। उसे कुछ याद नहीं था।

उसने कहा चली जाओ यहां से जिसके बाद पूजा वहां से चली गई अमित सोचने लगा कि यह सब कैसे हुआ

पहले यह मेरे सपोर्ट ग्रुप में आई, अब मेरे घर में। काश मैं कुछ मिनट रुककर पूजा की मौत देख पाता तो यह सब कभी नहीं होता…

लेकिन अब कुछ बदलने लगा था। पॉल को पूजा से प्यार हो चुका था। दोनों साथ रहने लगे। जो अमित को बिल्कुल भी पसंद नहीं आया वह तो बस पूजा को अपने जीवन से बाहर निकालना चाहता था।

उसी दौरान, अमित को पुलिस वाले का फोन आया। जिसने उसे बताया 

“तुम्हारे घर में आग अपने आप नहीं लगी थी…यह सब किसी ने जानबूझकर किया था कोई ऐसा जिसे घर की चीजों से बम बनाना आता हो।”

अमित ने बात को नज़रअंदाज कर दिया। आज उसे ऑफिस जाना था।

ऑफिस में उसने बॉस से कहा—“मैं कल से काम पर नहीं आऊँगा। मुझे एक साल की सैलरी एक साथ चाहिए।”

बॉस गुस्से से लाल हो गया “क्या?” उसने गार्ड्स को कॉल किया।

अमित ने देखा कि बॉस उससे नहीं उलझ रहा है तो उसने अचानक तोड़फोड़ शुरू कर दी, और खुद को भी चोट पहुँचा दी।

गार्ड्स आए तो उन्होंने समझा बॉस ने अमित को बुरी तरह पीटा है। मामला उल्टा पड़ गया। इसके बाद अमित को वह सब मिल गया जो उसे चाहिए था

अब अमित उन पैसों से ध्यान सभा को आराम से चला सकता था।

इस घटना से प्रेरित होकर पॉल ने ध्यान सभा के सभी सदस्यों को  “होमवर्क” देना शुरू कर दिया घर में जाकर पुराने और सस्ते समान को तोड़कर अपना गुस्सा उन चीजों पर बाहर निकालो। भांग और अन्य नशे में अनियंत्रित ध्यान सभा के सदस्यों ने शहर में भी तोड़फोड़ शुरू कर दी वे लोग किसी को चोट नहीं पहुंचा रहे थे वे तो बस उस सिस्टम पर अपना गुस्सा निकाल रहे थे जो उन्हें गुलामी की जिंदगी दे रहा था।

"रात को ध्यान सभा में जाकर अमित और पॉल को प्रोजेक्ट मुहिम के लिए भरोसेमंद लोगों को चुनना था।”

क्रमशः 

-अरुण चमियाल 


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