लघु उपन्यास "ध्यान सभा" अध्याय 2 माया का सौदा

अध्याय 2 माया का सौदा

पूजा, अमित के लिए किसी कैंसर की तरह बन गई थी—उसकी मौजूदगी में वह अंदर ही अंदर घुटने लगा था। उसके मन में डर की एक गहरी रेखा बैठ गई थी। उसने पूजा से कहा—

"मैं जानता हूँ तुम्हें कुछ नहीं हुआ। यहाँ से चली जाओ। यह जगह तुम्हारे लिए नहीं है।"

लेकिन पूजा उसकी धमकी से डरी नहीं। उसकी आँखों में एक अजीब साहस और चुनौती थी। उसने कहा—

"अगर तुमने मेरा नुकसान किया, तो मैं तुम्हें भी एक्सपोज़ कर दूँगी।"

दोनों के बीच की तनातनी का शोर उस कमरे में गूंज रहा था। एक पल के लिए लगा जैसे उनकी लड़ाई कभी खत्म न होगी। कुछ समय के बाद दोनों ठंडे पडे, फिर दोनों ने  समझदारी से निर्णय निकाला। 

दोनों ने हफ्ते में अपने-अपने दिन फिक्स किए। अमित और पूजा ने तय किया कि उसके बाद वे एक-दूसरे से कभी नहीं मिलेंगे।

इस समझौते के बाद, हफ्ते में अमित के जीवन में एक अजीब सा असंतुलन बन आया। पूजा की वजह से अब वह हफ्ते में केवल तीन दिन ही सो पाता था, लेकिन उन दिनों के लिए उसे अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता। और उस नींद में थोड़ी राहत पाना—सब कुछ एक तरह की नई आदत बन गई थी।

अमित एक फार्मास्यूटिकल कंपनी में काम करता है। उसका काम है यह देखना कि कंपनी की दवाओं से होने वाले नुकसान को कम कैसे किया जाए। आसान भाषा में कहें तो, कंपनी ने इस साल 10 लाख दवाएँ बनाई, जिनमें से कुछ दवाओं में साइड इफेक्ट्स थे, जिनकी वजह से कुछ मरीजों की जान जा सकती थी। अमित एक फॉर्मूले पर काम करता था—सबसे पहले यह देखा जाता कि उस मॉडल की कितनी दवाएँ बनाई गईं, फिर उन्हें उनके साइड इफेक्ट्स की संभावना से मल्टीप्लाइ किया जाता। इसके बाद उस नंबर को उन पैसों से मल्टीप्लाइ किया जाता जो कंपनी को प्रभावित मरीजों को देना पड़ते थे। अगर यह रकम उस पैसे से कम थी कि जिससे दवाओं को सुरक्षित बनाया जा सके, तो प्रभावित मरीजों को मुआवज़ा दे दिया जाता। बाकी दवाओं में साइड इफेक्ट पता होने के बावजूद कंपनी उन्हें मार्केट से नहीं हटातीं, सुरक्षा पर खर्च नहीं किया जाता, चाहे उनकी वजह से कितनी ही जानें जाएँ। उनके लिए मरीज केवल एक आंकड़ा था। उन्हें साइड इफेक्ट से जूझने और मरने वाले लोगों से कोई हमदर्दी नहीं थी।  

अमित अक्सर दवा से प्रभावित मरीजों की जांच के लिए ट्रेन से यात्रा करता था। हर बार जब ट्रेन झटके खाती, तो उसके मन में एक खयाल आता—काश यह ट्रेन पटरी से उतर जाए, और मेरी मौत हो जाए। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ।

एक दिन, जब वह नींद से जागकर आँखें खोलता है, तो उसके सामने सफेद वस्त्र में एक बाबा जी बैठा था। उसने अपना नाम पॉल बताया — “मैं सांसों पर ध्यान करना सिखाता हूँ,” उसने कहा।

थोड़ी देर बाद पॉल ने फुसफुसाते हुए पूछा, “क्या तुम्हें पता है कि हम घर पर बम बना सकते हैं?”

अमित ने चौंककर देखा — उन दोनों के फोन एक जैसे थे, और पॉल अपने फोन पर सचमुच “घर पर बम बनाने का तरीका” खोज रहा था।

बातचीत के अंत में पॉल ने अपना नंबर दिया। अमित को उसमें कुछ आकर्षण महसूस हुआ। कुछ देर बातचीत के बाद पॉल उतर गया।

जब अमित अपने घर पहुँचा, तो उसने देखा कि घर में आग लगी थी, और उसकी सारी कीमती चीज़ें राख में बदल चुकी थीं। अब उसके पास न छत थी, न कोई ठिकाना। उसने सोचा कि पूजा को कॉल करे — लेकिन तुरंत मन बदल गया, “नहीं, मैं उसे पसंद नहीं करता…”

उसका हाथ अपने आप पॉल के नंबर पर चला गया। फोन पर घंटी गई, पर किसी ने नहीं उठाया। वह घर से दूर जाने ही वाला था कि अचानक पॉल का कॉल आया।

अमित ने उसे सब कुछ बताया कि आज मेरे साथ क्या हुआ है। शायद उसने खुद नहीं समझा कि उसने पॉल को क्यों कॉल किया। लेकिन इस कॉल के बाद अमित की जिंदगी बदलने वाली थी।

उस शाम अमित, पॉल से मिलने के लिए शहर से दूर एक सुनसान आश्रम पहुँचा।

आश्रम किसी पुराने खंडहर में बदल चुका था — टूटी दीवारों पर उग आए काई के बीच हवा की सरसराहट एक अनकही कहानी सुना रही थी।

अमित ने वहाँ बैठकर पॉल को बताया कि उसके घर में आग लग गई है — सब कुछ जल गया, उसका महंगा लैपटॉप, टैबलेट, सोफ़ा, टीवी, फ्रिज, रसोई… जैसे उसके जीवन की सारी चीज़ें एक साथ राख बन गई हों।

पॉल ध्यान से सुनता रहा, फिर शांत स्वर में बोला,

“भूल जाओ इन्हें, अमित। जिन चीज़ों को हम अपना समझते हैं,

वो धीरे-धीरे हमें अपना गुलाम बना लेती हैं।

आज का इंसान गरीबी या भूख से नहीं, अपने ही बनाए माया से बंधा है।

उसे किसी क्राइम या अन्याय से फर्क नहीं पड़ता —

बस फर्क पड़ता है कि अगली शॉर्ट रील में क्या नया है,

या टीवी पर कौन-सी काल्पनिक दुनिया चल रही है।

तुम भी उनसे बहुत अलग नहीं हो।”

अमित कुछ देर चुप रहा।

पॉल ने मुस्कराते हुए कहा, “कह दो जो कहना चाहते हो... शर्माने की ज़रूरत नहीं।”

अमित ने नज़र झुकाई, थोड़ी हिचकिचाहट के बाद बोला,

“मुझे... रहने के लिए जगह चाहिए।”

पॉल कुछ देर तक उसे देखता रहा —

फिर बोला, “ठीक है,मैं तुम्हें अपनी झोपड़ी में जगह दूँगा, लेकिन मेरी एक शर्त है। तुम्हें अभी अपने सांसो पर ध्यान करना होगा।”

अमित ने कुछ समय संकोच किया फिर गहरी सांसो को लेकर उन पर ध्यान करने लगा। साथ में पॉल भी यह करने लगा। आज अमित का मन फिर से हल्का होने लगा और उसे सुकून मिलने लगा जब अमित का गुस्सा शांत हो गया उसके बाद दोनों ने भांग पी और मजे में झूमने लगे। अमित ने कहा यह मजेदार था हमें यह रोज करना चाहिए।

क्रमशः 

-अरुण चमियाल 


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