लघु उपन्यास "ध्यान सभा" अध्याय 3 भीतर की आज़ादी

अध्याय 3 भीतर की आज़ादी

लोगों को उनकी झूठी सच्चाई से दूर करना ही पॉल का मकसद था। उसके लिए वह कुछ भी कर सकता था — धोखा, छल, या किसी के विचारों तक से खेलना।

वह मानता था कि दुनिया के ज़्यादातर लोग माया में जीते हैं — लोग दूसरों की जिंदगी के ऐशो आराम की ज़िंदगी की नकल करते हैं और मोबाइल स्क्रीन के भीतर की नकली दुनिया में खोए रहते हैं। पॉल चाहता था कि अमित इस झूठी दुनिया से बाहर निकले, और अपने भीतर के गहरी शांति को देखे।

वह एक टूटे-फूटे घर में रहता था जहां बिजली, पानी की कोई सुविधा नहीं थी, आसपास न कोई पड़ोसी रहता था। ना ही कोई उसे जानने वाला। यहाँ रातें इतनी शांत थीं कि हवा के बहने की आवाज़ सांसो की आवाज से लयबद्ध होती थी।

रात को भांग का नशा करने के बाद, जब दोनों शवासन में लेटे थे, तब पॉल ने धीरे से अमित को कहा —

“अब अपनी सांसों को देखो। सिर्फ़ सांसों को।”

अमित ने आँखें बंद की और अपनी आती जाती सांसो को देखने लगा धीरे-धीरे उसका शरीर रिलेक्स होने लगा, और मन हल्का।

ध्यान के कुछ समय बाद एक पल आया जब उसे लगा, वह अपने शरीर से अलग हो गया है 

जैसे वह आकाश में तैर रहा हो, और नीचे ज़मीन पर खुद को देख रहा हो।

यह उसका पहला सूक्ष्म-यात्रा (Astral Travel) का अनुभव था।वह उस क्षण में इतना खो गया कि समय का ज्ञान, शरीर की अवस्था, सब उससे दूर चले गये।

वह आकाश में बहता हुआ किसी अनजान आयाम में पहुँच गया, जहाँ गहरी और रहस्यमयी शांति थी।

सुबह जब उसकी आँख खुली, तो उसे लगा जैसे वह किसी दूसरी दुनिया से लौटा हो।

पॉल मुस्करा रहा था —

“देखा... यही है असली यात्रा। बाहर नहीं, भीतर की।”

धीरे-धीरे अमित के भीतर कुछ बदलने लगा।

जो इंसान इंटरनेट और स्क्रीन के बिना जिंदा नहीं रह सकता था, पॉल के साथ रहते हुए उसे एक हफ्ते में ही उनके बिना रहने की आदत हो गई।

अधिकतर दिन वह सीधी साधी जिंदगी जिया करते थे और खंडहर आश्रम में ध्यान किया करते, लेकिन हफ़्ते के आख़िरी दिन — दोनों शहर के एक पुराने पार्क में जाकर ध्यान लगाते।

वहाँ पुराने पेड़ों की छाँव में बैठकर पॉल कहा करता —

“यहाँ लोग सैर करने आते हैं, पर तुम और मैं यहाँ दूसरों को ध्यान सभा में आकर्षित करने आते हैं।”

लोग उन्हें ध्यान करते हुए देखते और सोचते कि शायद दोनों पागल हो गए हैं। लेकिन उनके ध्यान के अनुभव सुनने में इतने मजेदार थे, कि जल्द वे लोग भी इसका हिस्सा बनने लगे। धीरे-धीरे यह अनुभव शहर में चर्चा का विषय बनने लगा। इस घटना के बाद अमित और पॉल का ध्यान करने का खण्डहर आश्रम भी चर्चाओं में आ गया।

रात के सन्नाटे में खंडहर आश्रम की दीवारों पर चाँदनी ठहरी हुई थी। अमित और पॉल भांग का नशा करके आम दिनों की तरह ध्यान में बैठे थे। 

पहले कुछ लोग सत्य की खोज में आए,

फिर कुछ ध्यान के अनुभवों की उत्सुकता में 

और देखते ही देखते, वह सुनसान आश्रम अब एक अनौपचारिक “ध्यान सभा” बन गया।

अब उस टूटी हुई जगह पर हर वर्ग के लोग आने लगे थे — सूट-बूट में पहने किसी बड़े अफ़सर से लेकर

थके हुए मजदूर तक। अमित और पॉल उन्हें भी भांग का नशा देकर सांसो पर ध्यान करने को कहते इससे अलग अलग लोगों को ध्यान के गूढ़ अनुभव मिलने लगे। किसी की कुंडलिनी शक्ति जागने लगी, किसी को अलौकिक ध्वनियाँ और दृश्य दिखाई देने लगे, किसी को तेज प्रकाश दिखाई देने लगा, किसी के विचार शून्य होने लगे।

घर जलने के बाबजूद अमित के खुश मिजाज़ व्यवहार को देखकर एक दिन उसके ऑफिस में बॉस ने पूछा —

“अमित, तुम्हारा घर जल गया, सब कुछ चला गया, इन सब चीजों से तुम्हें कोई फर्क़ नहीं पड़ता आखिर तुम हफ़्ते दर हफ़्ते किन चीजो में उलझ रहे हो?”

अमित बस हल्का मुस्कराया।

उसने बॉस को कोई जवाब नहीं दिया।

उसने खुद से कहा मैं यहां क्यों हूं

“मुझे तो नया घर ढूँढना चाहिए था,

इंश्योरेंस कंपनी से लड़ना चाहिए था,

अपने जले हुए घर पर नाराज होना चाहिए था…।”

पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। पॉल के वज़ह से उसे और उन सब लोगों को एक नयी जिंदगी मिली थी, जो इस सिस्टम से परेशान थे।

अब अमित को नींद के लिए किसी दवा या थेरेपी की ज़रूरत नहीं थी। वह रात को भांग पीकर ध्यान में बैठता और धीरे-धीरे किसी दूसरी दुनिया में चला जाता।

ध्यान अब उसका नशा बन चुका था।

और पॉल उसका साथी — जो लोगों को उनकी झूठी सच्चाई से दूर ले जाने आया था।

खंडहर आश्रम अब ध्यान सभा का अड्डा बन गया। वहाँ उन सबका मन बसता था, जो इस सिस्टम की भीड़ में खो चुके थे। ध्यान के अनुभवों को गहरा करने के लिए अमित और पॉल को बताए बिना कुछ लोग LSD लायसर्जिक एसिड डाइएथिलामाइड (Lysergic Acid Diethylamide)अत्यंत शक्तिशाली मादक दवा (साइकेडेलिक ड्रग) का प्रयोग करने लगे।

क्रमशः 

-अरुण चमियाल


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